

मैं आपको कुछ उपयोगी बातें बतलाऊंगा जिनको अपनाकर आप अपनी स्मरण शक्ती बढा सकेंगे, कद लम्बा कर सकेंगे! इसके इलावा दांन्त-आखें सुन्दर, शरीर मजबूत बना सकेंगे! लड्कियों के बाल खूब लम्बे होसकेंगे! मन बडा प्रसन्न रख सकोगे! तो करना है न ये सब? करने में बडा आसान है!
*१. रोज रात को सोते समय अपनें पैरों के तलुओं की मालिश देसी घी, शुद्ध सरसों के तेल, जैतून के तेल या नारियल के तेल से करें(इन में से जो भी मिले)! नाक के अन्दर भी लगाएं और अपनी नाभी में भी लगायें! सर दर्द, नक्सीर(नाक से खून आना), दिमाग का भारीपन आदि सब ठीक हो जायेंगे!
*२. दो-तीन चम्मच मेथी-दाना लेकर रात भर पचास ग्राम पानी में भिगो दें! प्रातः पचास ग्राम कोई अच्छा तेल लें और मेथी, मेथी का पानी व तेल को किसी पीतल या लोहे के बर्तन में पकायें! जब मेथी के दाने काले होजायें तो तेल तैयार हो गया! अब इसको ठण्डा करके छानें और किसी कांच की शीशी में रखें! रात को सोते समय इसकी चार-पांच बूंदें कान में डालने से कुछ ही दिन में दिमाग तेज होगा, कैइ और रोग भी ठीक होंगे!
नाक-कान में तेल डालने से थोडा-थोडा जुकाम होकर दिमाग हलका और मन प्रसन्न होजायेगा! दांतों की दर्द गायब होने लगेगी!स्मरण शक्ती बढने लगेगी! इतना ही नहीं, आंखें भी सुन्दर बन जायेंगी!
*३. एक छोटीसी सच्ची कहानी सुनो! स्वामी जगदीश्वरानन्द जी किसी भक्त की बेटी की शादी में दिल्ली गये तो देखा कि शादी की सारी तैयारी और धूम-धाम तो जैसी होती है वैसी ही है पर दुल्हन तथा उसके माता-पिता कहीं नजर नहीं आरहे! पूछने पर पता चला कि ऊपर के कमरे में हैं, पर क्यों? किसी को पता नहीं था! स्वामी जी ऊपर के कमरे में गये तो देखा तीनो सर झुकाकर उदास बैठे हैं! लडकी दुलहन के कपडे पहने घुंघट में थी! प्रणाम आदी के बाद पूछा कि क्या बात है? पता चला कि लडकी को आई-फ़्लू हुआ है जिसका इलाज होनें में कई दिन लगेंगे! कोई बडे से बडा आधुनिक चिकित्सक तुरत-फ़ुरत आईफ़्लू का इलाज नहीं कर सकता! शादी में कैसे तो लडकी को मण्डप में बिठायें और कैसे मुंह दिखाई करें?
स्वामी जी ने कहा कि चिंता न करो, बेटी अभी ठीक होजायेगी! और स्वामी जग्दीश्वरानन्द जी ने ये चमत्कार करदिया, लड्की पांच-छः घण्टों में ठीक होगई! प्रातः फ़ेरों के समय उसे देखकर पता ही नहिं चलता था कि उसे कभी आईफ़्लू हुआ भी था! स्वामी जी का यह जादू आप भी सीख सकते हैं, सीखोगे?
स्वामीजी ने असली मेंहदी पानी में आटे की तरह गूंधकर उसका एक लड्डु जैसा बनाकर लडकी के गुदा-स्थान (मल-स्थान, ऐनस) पर रखवा दिया! एक-एक घण्टे बाद उसे बदलते रहे और लडकी का आईफ़्लू गायब होगया. कितना आसान है न? पर ध्यान रखना कि मेंहदी बहुत ठण्डी होती है, अतः सर्दियों के मौसम में या ज्वर आदि में इसका प्रयोग न करें! उच्च-रक्तचाप, आखों की लाली भी इससे ठीक हो सकती है! इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि प्रातः मल त्याग के बाद ठण्डे पानी से गुदा-स्थान को धोने से आंखें और दिमाग स्वस्थ रह्ते हैं! जो टायलेट-पेपर का प्रयोग करते हैं और फ़ोम की कुर्सी, गद्दियों पर अधिक बैठते हैं; उन्हें आंख,कान,दिमाग के रोग भी अधिक होते होंगे, है न?
*४. अमेरीका के प्रो. जे. मोर्गन (एम.डी) ने अपने साढे चार हजर मरीजों का इलाज बिना दवाओं के केवल ओम बुलवाकर कर दिया! हमने भी स्वयं अपने पर और कई बच्चों व रोगियों पर ओम का असर आजमाया है! वाकई बडी जल्दी व बडा अछा असर होता है! आप भी ओम का कमाल आजमाकर देखो! रोज प्रातः और सोते समय ओम का जाप पांच-दस मिनेट तक कुछदेर बोलकर और फ़िर कुछ देर बिना बोले (मानसिक) जाप करें! आप देखेंगे कि आपके सारे के सारे शारीरिक के और मानसिक रोग ठीक होते जा रहे हैं! बुद्धी व स्मरण-शक्ती, ताकत तथा उत्साह, प्रसन्नता बढती ही जायेगी! दस-बारह दिन में ही बडा अछा असर नजर आने लगता है!
*५. जर्मन, फ़्रांस, रूस, इटली आदि अनेक देशों के वैग्यानिकों ने खोज की है कि भारतीय गऊ के गोबर को जलाने से हैजा, प्लेग, टाईफ़ाईड, डायरिया, टी.बी. तक के रोगाणु मर जाते हैं! अगर गोबर के उपले के साथ थोडी सी दाख, मुनक्का, किशमिश या गुड जला दिया जाये तो असर और भी अधिक होता है! केवल आधे घण्टे में नब्बे प्रतिशत से अधिक रोगाणू-कीटाणू मर जाते हैं! यानी अगर हम अपने घर में गोबर का एक टुकडा (अपनी उंगली जितना लम्बा और मोटा), थोडा सा देसी घी लगाकर धूप की तरह रोज सुबह-शाम जलायें और उसके साथ दो- चार दाने मुनक्का, दाख, किशमिश या गुड जलायेंगे तो हमारे घर में कभी भी कोई कीटाणुजन्य रोग होगा ही नहीं! कोई रोग होगा भी तो कुछ दिन में ठीक होजाजायेगा! गोबर की बत्तियां बनाते समय अगर उसमें थोडा तगर,जीरा, जटामासी,बचा,ब्रह्मी आदि डालसकें तो और भी कई लाभ होंगे!
सबसे पहले आकलैंड के वैग्यानिकों ने यह खोज की थी कि संसार में दो तरह की गऊएं हैं! (१) जिनके दूध में बीटा कैसीन ’ए-१’ नामक प्रोटीन है वे सब कैंसर आदि रोग पैदा करती हैं! फ़्रेजियन, हलिस्टीन, रेड-डैनिश तथा अधिकांश जर्सी गऊएं ’ए-१’ प्रोटीन वाली हैं जिनके दूध से मधुमेह(डायबिटीज), कैंसर, आटिज्म, ह्रिदय रोग आदि असाध्य बीमारियां लगती हैं! इनका गोबर, गोमूत्र, दूध, स्पर्श आदी सबकुछ विशाक्त होता है! यही कारण है कि ब्राजील ने चालीस लाख से अधिक भारतीय गोवंश अपने देश में तैयार किया है! अमेरिका भी अब यही कर रहा है! (२) दूसरी वे गऊएं हैं जिनके दूध में ’ए-२’ नामक प्रोटीन होती है! ये दूध बल-बुद्धी वर्धक है और यह कैंसर रोधक है! हमारी सारी भारतीय गऊएं ’ए-२’ प्रोटीन वाली होती हैं! पर विदेशी लोग हमें यह बात बताते नहीं, हमसे छुपाते हैं! अतः हमें अपने इस स्वदेशी गोवंश की सुरक्षा करनी होगी और इसी के घी- दूध, गोबर, गोमूत्र का प्रयोग करना होगा!
*६. कुछ सावधानियां रखने, अपनाने की भी जरूरत है, फ़िर आपका स्वास्थ्य कमाल का होजायेगा! समझने और याद रखने की ये बात है कि बोतल और पैकिट में बन्द सभी खाने-पीने के आहार पदार्थों में कुछ ऐसे रसायन डाले जा रहे हैं जिससे हमारा शरीर और दिमाग कमजोर होजाते हैं! इनमें एक रसायन का नाम है ’मोनोसोडियम ग्लुटामेट’. इसके असर से स्नायुकोश मरने लगते हैं; लीवर, गुर्दे, ह्रिदय, आंतें आदि भी धीमी गति से बेकार होने लगते हैं! इस ग्लुटामेट से अफ़ीम की तरह इसकी आदत पड जाती है और इसके बिना रहना मुश्किल हो जाता है! इसके प्रभाव से कम स्वाद चीजें अधिक स्वाद लगती हैं और स्नायुतंत्र इस तरह से खराब होजाता है कि पेट भर जाने की सूचना दिमाग तक पहुंचनी बन्द हो जाती है! लीवर खराब होजाने के कारण भूख नहीं लगती पर कुरकुरे, चिप्स, चाकलेट, पिज्जा, बरगर, खूब खाए जाते हैं क्योंकि ग्लुट्मेट हमें इसके लिये मजबूर करता है!
इनके इलावा भी कई हानिकारक रसायनिक पदार्थ इन पैकिटों और बोतलों में होते हैं! अतः इनसे बचना चाहिये!
*८. अश्वगंधा, विधारा, शतावरी ५०-५० ग्राम लेकर पीस लें, अब इसमें १५० ग्राम मिश्री मिलाकर रोज प्रातः एक छ्म्मच चूर्ण पानी या गो के दूध से खाते रहें! खटाई कुछ्दिन नहीं खाएं और कब्ज न हो तो शरीर शक्तीशाली बन जायेगा.
*९. रोज सवेरे एक बताशे में ५-७ बूंदें बड के दूध की डालकर खाने से लडके, लडकियों, बडे, बूढों के मूत्र रोग टीक होजाते हैं और शरीर सुन्दर व शक्तीशाली बनता है!
*१०. सर में शैम्पू लगाने से बाल, आखें, स्मरणशक्ती व चेहरा ख्राब होने लगते हैं क्योंकि इनमें कई हानिकारक रसायनों का प्रयोग हुआ होता है! साधू-सन्तों और अयुर्वेद के नाम पर बने जितने भी शैम्पू हमें बाजार में मिले, सभी हानिकारक थे! इसलिये शैम्पू की जगह कुछ और प्रयोग करना होगा! रीठा, निम्बू, दही, मेंहदी व नरोल साबुन का प्रयोग करके देखें!
*११. आपने देखा होगा कि आजकल के बच्चों के दांत सफ़ेद-सुन्दर नहीं होते. जानते हैं क्यों ? टुथपेस्ट में डले हुए फ़्लोराईड से दान्त और हमारे शरीर की हड्डियां गलने, खराब होने लगती हैं. इसपर अनेक शोध होचुके हैं. अतः पेस्ट के स्थान पर किसी मन्जन का प्रयोग करना चाहिये. क्भी-कभी दातुन भी करते रहें. मल-मूत्र त्याग के समय दान्त दबाकर बैठें और बाद में कुल्ला कर लें. इससे भी दान्त मजबूत बनते हैं. असल में मल-मूत्र त्याग के समय हमारे दन्तों की जडों में कुछ तेजाबी पदार्थ एकत्रित होकर उनकी जडों को कमजोर बना देते हैं. कुल्ला करने से ये तेजाबी तत्व निकल जाते हैं. हमारे पूर्वज तभी तो मल-मूत्र त्याग के बाद सदा कुल्ला किया करते थे.
*१२. अन्त में एक बात और कि सोने से पहले रात को वही सोचकर और पढकर सोना जो आप बनना चाह्ते हैं! सवेरे उठकर भी कुछ्देर तक वही सोचना और ईश्वर से क्रिपा मंगना! केवल एक साल में आपको नजर आने लगेगा कि आपने जो मांगा था आप वही बनते जा रहे हो, हालात उसी के अनुसार बन रहे हैं!
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About डॉ राजेश कपूर
डा, राजेश कपूर, पारम्परिक चिकित्सक। अनेक वनौषधियों पर खोज और प्रयोग, राष्ट्रीय-प्रान्तीय स्तर पर शोध पात्र प्रकाशन व वार्ताएं ; आयुर्वेद पर अनेक असाध्य रोगों की सरल-स्वदेशी तकनीकों की खोज। विश्वविद्यालयों से ग्रामों तक जैविक खेती पर वार्ताएं।" गवाक्ष भारती " मासिक पत्रिका का संम्पादन-प्रकाशन। आपात्त काल में नौ मास की जेल यात्रा। पठन-पाठन के क्षेत्र : पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियां, जैविक खेती, भारत का सही गौरवपूर्ण इतिहास, चिकित्सा जगत के षड़यंत्र, भारत पर छद्म आक्रमण। आजकल - अध्ययन, लेखन और औषधालय संचालन ।
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